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तब शिकायत दर्ज कराने में भी डर लग रहा था। दोषियों को सजा पर दंगा पीड़ित ने ली राहत की सांस

Muzaffarnagar Riots First Gangrape Conviction: मुजफ्फरनगर दंगा मामले में पहली बार गैंगरेप की धारा में सजा का ऐलान किया गया है। दो आरोपियों को 20 साल की सजा सुनाई गई है। इस मामले को लेकर पीड़ित ने अब राहत की सांस ली है। कानून पर भरोसा जताया है। अब इस सजा के ऐलान के बाद एक बार फिर मुजफ्फरनगर दंगों की चर्चा शुरू हो गई है।

मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर दंगों के करीब 10 साल बाद जिला कोर्ट ने गैंगरेप केस में सजा का ऐलान किया है। दो आरोपियों को सजा सुनाई गई है। 2013 के सांप्रदायिक दंगे के दौरान एक अल्पसंख्यक समुदाय की महिला के गैंगरेप का केस दर्ज किया गया था। इस मामले में तीन लोगों को आरोपी बनाया गया था। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान दो आरोपियों महेशवीर और सिकंदर मलिक को 20-20 साल की सजा सुनाई।

तीसरा आरोपी कुलदीप सिंह वर्ष 2020 में सुनवाई के दौरान ही मर गया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से मामले में तेजी लाने के आदेश के बाद इस केस की तेजी से सुनवाई हुई। दंगों के दौरान रेप के मामले में इस प्रकार की पहली सजा का भी दावा किया जा रहा है। वहीं, सजा के ऐलान के बाद पीड़िता ने राहत की सांस ली। उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो मैं शिकायत करने से डरती थी।

मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान गैंगरेप के मामले में तेजी लाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्थानीय कोर्ट को दिया गया था। इसके बाद मामले की सुनवाई तेज हुई।

पीड़िता के मामले को रख रहीं सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि 2013 के आपराधिक कानून संशोधन के अनुसार आईपीसी की धारा 376(2)(जी) के तहत सजा का यह शायद पहला मामला है।

इस धारा के तहत सांप्रदायिक दंगों के दौरान रेप के मामले में सजा का प्रावधान किया गया है। इसे हिंसा के बीच एक विशिष्ट अपराध के रूप में चिह्नित किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य वकील फरहा फैज ने कहा कि मेरे हिसाब यह पहली बार है, जब धारा 376(2)(जी) के तहत सजा का ऐलान है। धारा 376 में संशोधन के बाद किसी भी मामले में अब तक इन मामलों में सजा नहीं सुनाई गई थी।

पीड़िता ने कोर्ट की ओर से दोषियों को सजा सुनाए जाने के बाद कहा कि यह कठिन कानूनी लड़ाई थी। 10 साल पुराने उस दर्द को महिला आज भी नहीं भुला पाती हैं।

उन्होंने कहा कि मेरे साथ जो कुछ हुआ, मैंने अपने पति को राहत शिविर में बताया। शुरू में मैं शिकायत करने से डरती थी। मुझे आरोपी ने धमकी दी थी। राहत शिविर में हमने देखा, मैं इस प्रकार का दर्द झेलने वाली अकेली नहीं थी।

इस प्रकार की भयानक दास्तां अन्य महिलाओं की थी। कुछ महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के मामलों को अधिकारियों के सामने उठाया। मुझे भी हिम्मत मिली और मैंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि मैं समय पर हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का आभार जताती हूं।

महिला ने आगे कहा कि न्याय और सच्चाई की जीत हुई है। मुझे उम्मीद है कि मेरा मामला दंगों के अन्य यौन उत्पीड़न पीड़ितों के लिए आगे आने और न्याय पाने के लिए शक्ति के स्रोत के रूप में काम करेगा।

सात महिलाओं ने लगाया था गैंगरेप का आरोप

मुजफ्फरनगर और शामली जिलों में 2013 के दंगों के दौरान कम से कम सात महिलाओं ने सामने आकर दावा किया था कि उनके साथ रेप हुआ है। इन सभी मामलों में एफआईआर दर्ज की गई थी। सबूतों की कमी के कारण रेप के पांच मामलों में आरोपी को अदालत ने बरी कर दिया। वहीं, इस प्रकार के एक मामले में सुनवाई चल रही थी। दंगा और रेप पीड़िता ने कहा कि न्याय की राह आसान नहीं रही है। मुझे धमकियों और डराने-धमकाने का प्रयास किया गया। हमारे चरित्र के बारे में तिरस्कारपूर्ण जिरह का भी सामना करना पड़ा। बार-बार धमकियों और डराए जाने के कारण मुझे अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन, कई लोगों ने राह में मेरी मदद की, जिसके लिए मैं आभारी हूं।

पीड़िता ने कहा कि मुकदमा लंबा था और जानबूझकर मुझे थका देने के लिए हर कदम पर देरी हुई। त्वरित सुनवाई के अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग करने के लिए मुझे कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्देश दिए जाने के बाद ही कि मेरे मामले में दिन-प्रतिदिन सुनवाई हुई। यह केस आखिरकार अपने मुकाम पर पहुंचा।

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